क्रमोन्नत वेतनमान का विवाद: छत्तीसगढ़ सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, 50 हजार शिक्षकों को झटका


1. क्या है क्रमोन्नत वेतनमान का मामला?
छत्तीसगढ़ में 2013 में शिक्षकों के लंबे समय तक प्रमोशन न होने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 10 साल की सेवा पूरी कर चुके शिक्षकों को क्रमोन्नत वेतनमान देने की घोषणा की थी। लेकिन शिक्षकों के आंदोलन के चलते एक साल बाद सरकार ने शिक्षकों को समतुल्य वेतनमान देने का ऐलान किया और क्रमोन्नत वेतनमान का आदेश निरस्त कर दिया।


2. कैसे उठा विवाद?
कांकेर की शिक्षिका सोना साहू ने क्रमोन्नत वेतनमान के लिए कोर्ट में याचिका दायर की। जबकि सरकार क्रमोन्नत वेतनमान का आदेश निरस्त कर चुकी थी। कोर्ट ने शिक्षिका के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद राज्यभर के शिक्षक कोर्ट का रुख करने लगे।


3. क्या हुआ हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट ने शिक्षिका सोना साहू के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद अन्य शिक्षकों ने भी कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करनी शुरू कर दीं। यदि हाईकोर्ट का यह फैसला अन्य शिक्षकों पर लागू हुआ, तो राज्य के लगभग 50 हजार शिक्षकों को क्रमोन्नत वेतनमान का लाभ मिल सकता था।


4. सरकार की प्रतिक्रिया और सुप्रीम कोर्ट की शरण
इस फैसले से राज्य सरकार पर बड़ा वित्तीय बोझ पड़ने का खतरा पैदा हो गया। शिक्षकों को क्रमोन्नत वेतनमान देने के लिए खजाने पर भारी दबाव पड़ता। संकट से बचने के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (स्पेशल लीव पिटिशन) दाखिल की है।


5. शिक्षकों को झटका
सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर होने के बाद शिक्षकों को झटका लगा है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सबकी नजरें टिकी हैं। सरकार ने यह कदम वित्तीय संकट और बड़े पैमाने पर शिक्षकों द्वारा अदालत का रुख करने की संभावना को देखते हुए उठाया है।



यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर है, जिससे राज्य के 50 हजार शिक्षकों के भविष्य और वेतनमान को लेकर बड़ा फैसला हो सकता है।


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